संविधान की तालीमों पर अमल कर बेहतर नागरिक बनें
संविधान दिवस / 26 नवंबर / लेख
संविधान की तालीमों
पर अमल कर बेहतर नागरिक बनें
फादर डॉ. एम. डी. थॉमस
निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि
एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली
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26 नवंबर को भारत में ‘संविधान दिवस’ मनाया जा रहा है। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीम राव आंबेडक़र थे और उनके 125वीं जयंती वर्ष 2015 में भारत में पहली बार ‘संविधान दिवस’ मनाया गया था।
29 अगस्त 1947 को संविधान सभा के प्रारूप समिति का गठन हुआ था और भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को, याने 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन में, बनकर तैयार किया गया था। गणतंत्र भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागू कर राष्ट्र को समर्पित किया गया भी था।
आंबेडकरवादी और बौद्ध समुदाय के लोगों द्वारा कई दशकों से ‘संविधान दिवस’ मनाया जाता रहा है। लेकिन, इस समारोह के लिए औपचारिक रूप से भारत सरकार का अंगीकार 2015 में ही मिला। इस दिन संविधान निर्माण समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ. हरीसिंह गौड़ का जन्म दिवस भी होता है। संविधान दिवस को ‘राष्ट्रीय कानून दिवस’ भी कहा जाता है।
2015 को ‘संविधान दिवस’ मनाते हुए विद्यालयों में संविधान की ‘उद्देशिका’ को पढ़ा गया, संविधान की मुख्य विशेषताओं पर व्याख्यान हुआ, संविधान पर लेख लिखवा गया और संविधान पर ‘क्विज़’ आयोजित हुआ। साथ ही, उच्चतर शिक्षा विभाग ने संसदीय वाद-विवाद आयोजित किया। यूजीसी ने अखिल भारतीय क्विज़ प्रतियोगिता भी रखी। ज़ाहिर है, संविधान के मूल्यों की ओर जागरूक करना इन गतिविधियों का उद्देश्य था।
इसके अलावा, विदेश मंत्रालय ने विलायत में चल रहे भारतीय विद्यालयों को यह निर्देश दिया कि अपने-अपने देश के विद्यालय में ‘संविधान दिवस’ को मनायें। दूतावासों को भी निर्देश दिया गया कि अपनी देशीय भाषा में भारत के संविधान का तर्जुमा तैयार कर वहाँ की अकादमी, पुस्तकालय और संकायों में वितरित करें। इतना ही नहीं, खेलकूद विभाग ने ‘समता दौड़’ का आयोजन किया। ‘संविधान दिवस’ पर संविधान और आंबेडक़र को श्रद्धांजलि भी दी गयी थी।
भारत के संविधान में राष्ट्रभाषाएँ ‘हिंदी व अंग्रेज़ी’ के अलावा 22 प्रादेशिक भाषाओं को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दी गयी है। इनमें 21 भाषाओं में संविधान का अनुवाद किया गया है। यह अरबी भाषा में भी मौज़ूद है। इतनी भाषाओं में तर्जुमा होना भारत के संविधान की ऐसी उपलब्धि है जो कि समूची दुनिया में किसी भी देश को शायद हासिल नहीं है।
भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा संविधान है। इसमें 12 अनुसूचियाँ, 22 भाग और 395 अनुच्छेद या धाराएँ हैं। भारत के संविधान की मूल प्रति टंकित या छपी हुई नहीं होकर अंग्रेज़ी और हिंदी में हस्त-लिखित है। यह शांति निकेतन और दिल्ली के कलाकारों द्वारा हस्त-लिखित है। इसकी मूल प्रतियाँ संसद के पुस्तकालय में रखी गयी हैं।
दुनिया के सबसे अच्छे संविधानों में भारत के संविधान की गिनती है। इसमें सभी धर्मों के सार्वजनिक मूल्यों का भाव कानून व व्यवहार के रूप में मिलता है। मूल्यों की एक संहिता होने के तौर पर संविधान भारत के नागरिकों को सशक्त करता है। नागरिक भी संविधान का पालन करते और उसे सुरक्षित रखते हुए उसे सशक्त करता है। दूसरे शब्दों में, संविधान के मूल्यों की रौशनी में जीना ही संविधान की ताकत है, गरिमा भी।
संविधान को लागू करते समय भाग 3 में ‘मौलिक अधिकार’ सम्मिलित था। लेकिन, ‘मौलिक कर्तव्य’ शामिल नहीं था। 1976 में ‘स्वरण सिंह समिति की शिफारिश के अनुसार संविधान के 42वीं संशोधन में ‘मौलिक कर्तव्य’ का अध्याय जोड़ दिया गया। यह इसलिए था कि अधिकार और कर्तव्य आपस में पूरक हैं, जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं। लोकतंत्र की माँग है कि नागरिक दोनों को एक साथ लिए चलें।
संविधान में मौलिक अधिकार की बात यूएसएसआर से ली गयी थी। मौलिक अधिकार की आत्मा भारतीय परंपरा पर आधारित भी है। संस्कृत का शब्द ‘धर्म’ का अर्थ ‘कर्तव्य’ इस संदर्भ में अहम् है। मौलिक अधिकार शुरू में दस थे और 2002 में संविधान के 86वें संशोधन में 11वां अधिकार जोड़ दिया गया था।
डॉ. भीम राव आंबेडक़र को ‘भारत के संविधान के पिता’ माना जाता है। आप क्रांतिकारी, समग्र और सामाजिक विचारधरा के धनी और जाति आंदोलन का मसीहा थे। आप दलितों के ‘पृथक निर्वाचन नुमाइंदगी’, ‘अछूतों के सामाजिक व आर्थिक विकास’, ‘बालिग मताधिकार’, आदि के सख्त हिमायती थे। आप ने ‘आरक्षित क्षेत्रों की तादाद में बढ़ोत्तरी’ को लेकर ‘पुणे समझौता’ भी करवाये थे।
डॉ. आंबेडक़र ने संविधान को सामाजिक सुधार, सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय एकता और विविध समुदायों के बीच की खाई को पाटने का ज़रिया समझा। तब जाकर आगे चलकर उसमें ‘पंथ-निरपेक्षता’ या ‘सर्व धर्म समभाव’ के लिए जगह बनी। यह भी बड़े गौरव की बात है कि दलित समुदय से उभरकर डॉ. आंबेडक़र ने भारत देश का पहला कानून मंत्री तथा संविधान के रचयिता बनने की अहम् ख्याति हासिल की।
भारत के संविधान की ‘प्रस्तावना’ की रूपरेखा इस प्रकार है, ‘हम, भारत के लोग’ ‘अपनी इस संविधान सभा में’, ‘दिनांक 26 जनवरी 1949 ई. को’ ‘भारत को’ ‘एतद द्वारा’ ‘अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं’। दृढ़ संकल्प यह है कि भारत एक ‘संपूर्ण, प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और लोकतंत्रात्मक गणराज्य रहेगा।
दृढ़ संकल्प यह भी है, भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिलेगा। भारत के समस्त नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता रहेगी। भारत के सब नागरिकों में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ेगी।
बात यह भी है कि संविधान भारत के शासन-प्रशासन के लिए ‘सडक़-गलियों की बत्ती’ के बराबर है। यह सभी नागरिकों के लिए मार्गदर्शिका भी है। यह शासक और शासित दोनों के लिए ‘भारत का साझा धर्म ग्रंथ’ है। संविधान के मूल्यों की पटरी पर चलना शासन-प्रशासन और नागरिकों के लिए ‘देशभक्ति’ है। संविधान क्र मूल्यों की पटरी से उतरना या उससे हटकर चलना नागरिकों के लिए ही नहीं, शासन-प्रशासन के लिए भी ‘देशद्रोह’ के बराबर है। क्योंकि संविधान के मापदण्डों के सामने सभी नागरिक, खास और आम, बराबर है, यही कायदा है।
‘संविधान दिवस 2021’ के पुनीत अवसर पर भारत के सभी नागरिकों के साथ शासन-प्रशासन के जि़म्मेदार लोगों को संविधान के मूल्यों की रौशनी में चलने का नये सिरे से संकल्प करना होगा। हर नागरिक की आज़ादी, बराबरी, भाईचारा, पंथनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता के ज़रिये राष्ट्रीय एकता हमेशा सुन्निश्चित रहे और भारत देश का भविष्य उज्ज्वल बनाने में योगदान होता रहे। यही भारत देश के उज्ज्वल भविष्य की दिशा में पाथेय है।
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
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